रंगकर्म की दुनिया में पहला कदम....बनाम नाटक और मैं
रंगमंच की दुनिया में मेरा पहला कदम तब ही पड़ गया शायद जब मैं इस दुनिया के रंगमच पर अवतरित हुआ...दादा से लेकर बाबूजी तक नाटकों की एक परंपरा का हिस्सा भर ही था.
रंगमंच की दुनिया में मेरा पहला कदम तब ही पड़ गया शायद जब मैं इस दुनिया के रंगमच पर अवतरित हुआ...दादा से लेकर बाबूजी तक नाटकों की एक परंपरा का हिस्सा भर ही था.
अपने चारों तरफ नज़रें फिराकर देखिये। क्या कुछ राजनितिक नहीं है। हमारे रहन-सहन, हमारी दिनचर्या, हमारी दोस्ती, हमारा धर्म, हमारी जाति, रोजगार, बेरोजगारी, महगाई, गरीबी...
भारत के सन्दर्भ में आप राष्ट्रवाद को गौर से देखिएगा की इस देश का में राष्ट्रवाद एक सवर्ण मानसिकता है जो जनेऊ की श्रेष्ठता पर टिका है. जिसके मूल में वर्णाश्रम व्यवस्था...
तस्वीर में अंजलि, सजल और बुलबुल है। भागलपुर स्टेशन पर भीख मांग रहे ये बच्चे दलित जाति से आते हैं। किसी सवर्ण के बच्चे को स्टेशन पर भीख मांगते देखा है आपने? दिखें तो बताइयेगा।सोचिये...
"आरक्षण'' आज के दौर का सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द बन चुका है। अधिकांश राजनीतिक पार्टियां आरक्षण को खत्म करने या इसमें संसोधन की बात कर रही हैं। लोगों के मन में भी धारणा बन चुकी है
महाराष्ट्र से बीजेपी विधायक रविंद्र चव्हाण ने दलितों की तुलना सूअर से की है। बिहार के भागलपुर जिले में बरारी घाट पर रहता है हीरा डोम। हीरा सूअर पालता है।
पहले आधे से ज्यादा ओबीसी को राज्यसभा भेजा और अब दलित के बाद आदिवासी महिला को राष्ट्रपति। भाजपा हमेशा से कांग्रेस से चार कदम आगे रहती है ।